5 Simple Statements About Shodashi Explained

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Shodashi’s mantra encourages self-discipline and mindfulness. By chanting this mantra, devotees cultivate greater Management about their views and actions, bringing about a more aware and purposeful method of life. This advantage supports particular development and self-self-discipline.

चक्रेश्या प्रकतेड्यया त्रिपुरया त्रैलोक्य-सम्मोहनं

Shodashi’s mantra enhances devotion and faith, encouraging devotees establish a deeper link on the divine. This gain instills believe in within the divine approach, guiding persons by problems with grace, resilience, and a way of goal inside their spiritual journey.

संहर्त्री सर्वभासां विलयनसमये स्वात्मनि स्वप्रकाशा

षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram

उत्तीर्णाख्याभिरुपास्य पाति शुभदे सर्वार्थ-सिद्धि-प्रदे ।

यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है। इसके बारे में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त Shodashi करता है, पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।

बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।

It really is drive that turns the wheel of karma,  and that holds us in duality.  It can be Shodashi who epitomizes the  burning and sublimation of these needs.  It can be she who permits the Doing work outside of outdated  karmic styles, resulting in emancipation and soul liberty.

॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥

देव्यास्त्वखण्डरूपायाः स्तवनं तव तद्यतः ॥१३॥

Her role transcends the mere granting of worldly pleasures and extends to your purification of the soul, leading to spiritual enlightenment.

देवीं कुलकलोल्लोलप्रोल्लसन्तीं शिवां पराम् ॥१०॥

सर्वभूतमनोरम्यां सर्वभूतेषु संस्थिताम् ।

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